बारां और झालावाड़ का इलाका देखा। सघन जंगलों, पठारों की धरती। पठार पर बसे सहरियों और मीणों की धरती देखी। मध्यप्रदेश से सटे हुए इस इलाके के आव भाव बाक़ी राजस्थान से बहुत अलग है। विकास के पैमाने भी अलग है।
कौड़ियों के उधार के बदले जीवन पालने वाली पुरखों की धरती को खो बैठने की कहानियां यहाँ आज भी ज़िन्दा हैं।
पुरखों के थान यहाँ मंदिरों से ज़्यादा दिखे। कहीं कहीं उन पर भगवा पोता गया है। लेकिन अधिकांश जगह अपने झण्डे मौजूद हैं।
बरसात के मौसम में हरियाली चारों तरफ़ थी। उमस थी। नदियाँ भरी हुई थी और चल रहीं थी।
आदिवासियत की अगली कड़ी यहीं जुड़े तो बेहतर हो।
राहुल लोद वाल की पोस्ट
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Kritika Mardi
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