Guru Das changed his profile picture
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Fatherhood is the most crucial responsibility and yet the greatest adventure one can experience. Happy Father’s Day.

Sunday Soch

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Ruhaan KISKU changed his profile picture
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Ruhaan KISKU changed his profile picture
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Santali Lyrics | Best Santali Lyrics Website
https://santalilyrics.moderndisom.in/

Thank you for making growing up fun and teaching all the important lessons. I love you!


#happy_fathers_day ❤️




#tribehool 🤘

medikeri

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Kritika Mardi shared a post  
4 yrs

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कालीबाई भील डूंगरपुर जिले के रास्तापाल गाँव की रहने वाली थी. अंग्रेजो के दबाव में डूंगरपुर राज्य में विद्यालयों के संचालन की मनाही थी. प्रजामंडल ने अन्यायपूर्ण तरीके से विद्यालयों को बंद करने का विरोध किया और औपनिवेशिक शासन की समाप्ति की मांग की. प्रजामंडल के कार्यकर्ताओं पर डूंगरपुर के राजा द्वारा अत्याचार किया जाने लगा और उन्हें जेल में डाल दिया.
इसी प्रकार एक विद्यालय नानाभाई खाट के घर पर संचालित था. राज्य पुलिस 19 जून 1947 को रास्तापाल आई. नानाभाई खांट ने विद्यालय बंद करने से मना कर दिया. पुलिस ने बर्बरतापूर्वक नानाभाई खांट की पिटाई कर दी और उन्हें जेल भेज दिया, पुलिस की चोटों से नानाभाई खांट की मृत्यु हो गई. इससे लोगों में असंतोष की भावना में और वृद्धि हुई.

पुलिस ने विद्यालय के अध्यापक सेंगाभाई रोत भील को इसलिए मरना आरम्भ कर दिया, क्योकि उसने नानाभाई खांट की मृत्यु के बाद विद्यालय अध्यापन जारी रखा था. अध्यापक को पुलिस ने अपने ट्रक के पीछे बाँध दिया और इसी अवस्था में उसे घसीटते हुए रोड पर ले आए. विद्यालय की किशोर बालिका कालीबाई से यह देखा नही गया. पुलिस के मना करने के बाद भी वह ट्रक के पीछे पीछे दौड़ी और उस ट्रक से रस्सी को काटकर अपने अध्यापक को अंग्रेजो से मुक्त कराया. इससे पुलिस अत्यधिक क्रोधित और उत्तेजित हो गई. जैसे ही कालीबाई अपने अध्यापक सेंगाभाई को उठाने के लिए झुकी, पुलिस ने कालीबाई के पीठ पर गोली दाग दी. कालीबाई गिरकर अचेत हो गई. बाद में डूंगरपुर के चिकित्सालय में उसकी मृत्यु हो गई.

पुलिस की इस बर्बरता एवं विद्यालय की एक किशोर बालिका की अन्यायपूर्ण तरीके से हत्या से भीलों में जबर्दस्त असंतोष फ़ैल गया. लगभग 12 हजार लोग हथियारों सहित एकत्र हो गये. महारावल डूंगरपुर पर दवाब बनाया जाने लगा कि वह प्रजामंडल के कार्यकर्ताओं को जेल से रिहा करे और भीलों के समूह को शांत करे और उन्हें लौटाने के लिए राजी करे. अब रास्तापाल में 13 वर्षीय कालीबाई की प्रतिमा स्थापित है. उनकी शहादत की स्मृति में अब भी यहाँ प्रतिवर्ष शहादत के दिन मेला लगाया जाता है. और लोग इस अमर शहीद बाला कालीबाई को श्रद्धासुमन अर्पित करते है.

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Susama Tudu shared a post  
4 yrs

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कालीबाई भील डूंगरपुर जिले के रास्तापाल गाँव की रहने वाली थी. अंग्रेजो के दबाव में डूंगरपुर राज्य में विद्यालयों के संचालन की मनाही थी. प्रजामंडल ने अन्यायपूर्ण तरीके से विद्यालयों को बंद करने का विरोध किया और औपनिवेशिक शासन की समाप्ति की मांग की. प्रजामंडल के कार्यकर्ताओं पर डूंगरपुर के राजा द्वारा अत्याचार किया जाने लगा और उन्हें जेल में डाल दिया.
इसी प्रकार एक विद्यालय नानाभाई खाट के घर पर संचालित था. राज्य पुलिस 19 जून 1947 को रास्तापाल आई. नानाभाई खांट ने विद्यालय बंद करने से मना कर दिया. पुलिस ने बर्बरतापूर्वक नानाभाई खांट की पिटाई कर दी और उन्हें जेल भेज दिया, पुलिस की चोटों से नानाभाई खांट की मृत्यु हो गई. इससे लोगों में असंतोष की भावना में और वृद्धि हुई.

पुलिस ने विद्यालय के अध्यापक सेंगाभाई रोत भील को इसलिए मरना आरम्भ कर दिया, क्योकि उसने नानाभाई खांट की मृत्यु के बाद विद्यालय अध्यापन जारी रखा था. अध्यापक को पुलिस ने अपने ट्रक के पीछे बाँध दिया और इसी अवस्था में उसे घसीटते हुए रोड पर ले आए. विद्यालय की किशोर बालिका कालीबाई से यह देखा नही गया. पुलिस के मना करने के बाद भी वह ट्रक के पीछे पीछे दौड़ी और उस ट्रक से रस्सी को काटकर अपने अध्यापक को अंग्रेजो से मुक्त कराया. इससे पुलिस अत्यधिक क्रोधित और उत्तेजित हो गई. जैसे ही कालीबाई अपने अध्यापक सेंगाभाई को उठाने के लिए झुकी, पुलिस ने कालीबाई के पीठ पर गोली दाग दी. कालीबाई गिरकर अचेत हो गई. बाद में डूंगरपुर के चिकित्सालय में उसकी मृत्यु हो गई.

पुलिस की इस बर्बरता एवं विद्यालय की एक किशोर बालिका की अन्यायपूर्ण तरीके से हत्या से भीलों में जबर्दस्त असंतोष फ़ैल गया. लगभग 12 हजार लोग हथियारों सहित एकत्र हो गये. महारावल डूंगरपुर पर दवाब बनाया जाने लगा कि वह प्रजामंडल के कार्यकर्ताओं को जेल से रिहा करे और भीलों के समूह को शांत करे और उन्हें लौटाने के लिए राजी करे. अब रास्तापाल में 13 वर्षीय कालीबाई की प्रतिमा स्थापित है. उनकी शहादत की स्मृति में अब भी यहाँ प्रतिवर्ष शहादत के दिन मेला लगाया जाता है. और लोग इस अमर शहीद बाला कालीबाई को श्रद्धासुमन अर्पित करते है.

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