श्याम सी. टुडू ने संताली को हर तरह से सिखाने की कोशिश की थी। वह एक आसान और व्यावहारिक दृष्टिकोण का उपयोग करता है। उन्होंने आमतौर पर घर और सार्वजनिक स्थानों जैसे खेल के मैदान, सिनेमा हॉल, ट्रेन आदि में इस्तेमाल होने वाले वाक्यों और वाक्यांशों का अनुवाद किया था। साथ ही साथ जगह जगह पर सुझाव भी जोड़े है, जो की सिखने की प्रक्रिया को और अच्छा बनाती है |
वह संताली भाषा के बारे में तथ्यों का उल्लेख करके शुरू करते हैं, जहां उन्होंने कुछ लेखकों को उद्धृत किया जिन्होंने संतालों के बारे में लिखा था। फिर उन्होंने ओल-चिकी लिपि के संस्थापक पंडित रघुनाथ मुर्मू का परिचय देना जारी रखा, जिसके बाद ओल-चिकी के अक्षर थे।
ᱚ ᱛ ᱜ ᱝ ᱞ
ᱟ ᱠ ᱡ ᱢ ᱣ
ᱤ ᱥ ᱦ ᱧ ᱨ
ᱩ ᱪ ᱫ ᱬ ᱭ
ᱮ ᱯ ᱰ ᱱ ᱲ
ᱳ ᱴ ᱵ ᱶ ᱷ
~ - ᱽ . ᱸ
अंक - ᱐ ᱑ ᱒ ᱓ ᱔ ᱕ ᱖ ᱗ ᱘ ᱙
एक बार जब हम अक्षरों से परिचित हो जाते है, तब लेखक हमे प्रश्न वाचक वाक्य, साधारण वाक्य, स्थान सूचक वाक्य, नकारात्मक वाक्य, गणना के शब्द, मात्रा सुखक वाक्य, एक दूसरे के पूरक शब्द, मिले जुले वाक्य, निमंत्रण, प्रार्थना, आदि के सहारे से सिखाते है |
व्याकरण के बिना कोई भी भाषा सीखना अधूरा है। लेखक हमे क्रिया के पुरुष में व्यव्हार बताते है और काल समझते है, जिससे हमे स्वयं वाक्य बनाने में सक्ष्म हो जाते है | किताब के अंत में वे मिनी डिक्शनरी के द्वारा हमे शरीर के अंगो के नाम, रंगो, सात दिनों, सब्जी, फल, जिव-जंतु, पक्षी के नाम और ऐसे अन्य शब्दों से परिचित करते है |
जैसे-
रविवार - सिंगे माहा
सोमवार - ओते माहा
मंगलवार - बाले माहा
इत्यादि |